मोक्ष प्राप्ति
मोक्ष प्राप्ति होने पर मनुष्य का जीवात्मा 31 नील 10 खराब 40 अरब वर्षों तक दुःखों से पूर्णतया मुक्त होकर ईश्वर के आनन्दस्वरूप में ईश्वर के साथ रहता हुआ आनन्द को भोक्ता है। यही मनुष्य की जीवात्मा का चरम लक्ष्य है। सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन कर मोक्ष विषय को पूर्णतयः समझा जा सकता है। वैदिकधर्मी सभी ऋषि, योगी एवं इतर आर्यजन इन्हीं लक्ष्यों के लिए अपना सारा जीवन अभ्युदय व मोक्ष प्राप्ति के कार्यों में ही लगाते थे। हम समझते हैं कि पाठक हमारे सृष्टि की रचना विषयक इस विषय को जानने में समर्थ होंगे।
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महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों...